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ब्राह्मण मन और ऋषिकर्म
अंतरंग में ब्राह्मण वृत्ति जगते ही बहिरंग में साधु प्रवृत्ति का उभरना स्वाभाविक है। ब्राह्मण अर्थात लिप्सा से जूझ सकने योग्य मनोबल का धनी— प्रलोभनों और दबावों का सामना करने में समर्थ— औसत भारतीय स्तर के निर्वाह में काम चलाने से संतुष्ट। इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए आरंभिक जीवन में ही मार्गदर्शक का समर्थ प्रशिक्षण मिला। वही ब्राह्मण जन्म था। माता-पिता तो एक मांसपिंड को जन्म इससे पहले ही दे चुके थे। ऐसे नर-पशुओं का कलेवर न जाने कितनी बार पहनना और छोड़ना पड़ा होगा। तृष्णाओं की पूर्ति के लिए न जाने कितनी बार पाप के पोटले, कमाने, लादने, ढोने और भुगतने पड़े होंगे, पर संतोष और गर्व इसी जन्म पर है। जिसे ब्राह्मण जन्म कहा जा सकता है। एक शरीर नर-पशु का, दूसरा नर-नारायण का प्राप्त करने का सुयोग इ...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 98): बोओ एवं काटो’ का मंत्र, जो हमने जीवन भर अपनाया
अध्यात्म को विज्ञान से मिलाने की योजना— कल्पना में तो कइयों के मन में थी, पर उसे कोई कार्यान्वित न कर सका। इस असंभव को संभव होते देखना हो, तो ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में आकर अपनी आँखों से स्वयं देखना चाहिए। जो संभावनाएँ सामने हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले दिनों अध्यात्म की रूपरेखा विशुद्ध विज्ञानपरक बनकर रहेगी।
छोटे-छोटे देश अपनी पंचवर्षीय योजनाएँ बनाने के लिए आकाश-पाताल के कुलावे मिलाते हैं। पर समस्त विश्व की कायाकल्प योजना का चिंतन और क्रियान्वयन जिस प्रकार शान्तिकुञ्ज के तत्त्वावधान में चल रहा है, उसे एक शब्द में अद्भुत एवं अनुपम ही कहा जा सकता है।
भावनाएँ हमने पिछड़ों के लिए समर्पित की हैं। शिव ने भी यही किया था। उनके साथ चित्र-विचित्र समुदाय रहता था और सर्पों तक को वे गले...
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हमारी वसीयत और विरासत (भाग 97): बोओ एवं काटो’ का मंत्र, जो हमने जीवन भर अपनाया
इसे परीक्षा का एक घटनाक्रम ही कहना चाहिए कि पाँच बोर का लोडेड रिवाल्वर शातिर हाथों में भी काम न कर सका। जानवर काटने के छुरे के बारह प्रहार मात्र प्रमाण के निशान छोड़कर अच्छे हो गए। आक्रमणकारी अपने बम से स्वयं घायल होकर जेल जा बैठा। जिसके आदेश से उसने यह किया था, उसे फाँसी की सजा घोषित हुई। असुरता के आक्रमण असफल हुए। एक उच्चस्तरीय दैवी प्रयास को निष्फल कर देना संभव न हो सका। मारने वाले से बचाने वाला बड़ा सिद्ध हुआ।
इन दिनों एक से पाँच करने की सूक्ष्मीकरण विधा चल रही है। इसलिए क्षीणता तो आई है। तो भी बाहर से काया ऐसी है, जिसे जितने दिन चाहें जीवित रखा जा सके। पर हम जान-बूझकर इसे इस स्थिति में रखेंगे नहीं। कारण कि सूक्ष्मशरीर से अधिक काम लिया जा सकता है और स्थूलशरीर उसमें किसी कदर बाधा ही डालता ह...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 96): बोओ एवं काटो’ का मंत्र, जो हमने जीवन भर अपनाया
इस विराट को ही हमने अपना भगवान माना। अर्जुन के दिव्य चक्षु ने इसी विराट के दर्शन किए थे। यशोदा ने कृष्ण के मुँह में स्रष्टा का यही स्वरूप देखा था। राम ने पालने में पड़े-पड़े माता कौशल्या को अपना यही रूप दिखाया था और काकभुशुंडि इसी स्वरूप की झाँकी करके धन्य हुए थे।
हमने भी अपने पास जो कुछ था, उसी विराट ब्रह्म को— विश्वमानव को सौंप दिया। बोने के लिए इससे उर्वर खेत दूसरा कोई हो नहीं सकता था। वह समयानुसार फला-फूला। हमारे कोठे भर दिए गए। सौंपे गए दो कामों के लिए जितने साधनों की जरूरत थी, वे सभी उसी में जुट गए।
शरीर जन्मजात दुर्बल था। शारीरिक बनावट की दृष्टि से उसे दुर्बल कह सकते हैं। जीवनीशक्ति तो प्रचंड थी ही। जवानी में बिना शाक, घी, दूध के 24 वर्ष तक जौ की रोटी और छाछ लेते रहने से वह और कृश हो गय...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 95): बोओ एवं काटो’ का मंत्र, जो हमने जीवन भर अपनाया
हिमालययात्रा से हरिद्वार लौटकर आने के बाद जब आश्रम का प्रारंभिक ढाँचा बनकर तैयार हुआ, तो विस्तार हेतु साधनों की आवश्यकता प्रतीत होने लगी। समय की विषमता ऐसी थी कि जिससे जूझने के लिए हमें कितने ही साधनों, व्यक्तित्वों एवं पराक्रमों की आवश्यकता अपेक्षित थी। दो काम करने थे— एक संघर्ष, दूसरा सृजन। संघर्ष उन अवांछनीयताओं से, जो अब तक की संचित सभ्यता, प्रगति और संस्कृति को निगल जाने के लिए मुँह बाए खड़ी हैं। सृजन उसका, जो भविष्य को उज्ज्वल एवं सुख-शांति से भरा-पूरा बना सके। दोनों ही कार्यों का प्रयोग समूचे धरातल पर निवास करने वाले 500 करोड़ मनुष्यों के लिए करना ठहरा था, इसलिए विस्तारक्रम अनायास ही अधिक हो जाता है।
निज के लिए हमें कुछ भी न करना था। पेट भरने के लिए जिस स्रष्टा ने कीट-पतंगों तक के लिए व...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 94): शान्तिकुञ्ज में गायत्री तीर्थ की स्थापना
गुजारा अपनी जेब से एवं काम दिन-रात स्वयंसेवक की तरह मिशन का, ऐसा उदाहरण अन्य संस्थाओं में चिराग लेकर ढूँढ़ना पड़ेगा। यह सौभाग्य मात्र शान्तिकुञ्ज को मिला है कि उसके पास एम०ए०, एम०एस०सी०, एम०डी०, एम०एस०, पी०एच०डी०, आयुर्वेदाचार्य, संस्कृत आचार्य स्तर के कार्यकर्त्ता हैं। उनकी नम्रता, सेवाभावना, श्रमशीलता एवं निष्ठा देखते ही बनती है। जबकि वरीयता योग्यता एवं प्रतिभा को दी जाती है, डिग्री को नहीं। ऐसा परिकर जुड़ना इस मिशन का बहुत बड़ा सौभाग्य है।
जो काम अब तक हुआ है, उसमें पैसे की याचना नहीं करनी पड़ी। मालवीय जी का मंत्र मुट्ठी भर अन्न और दस पैसा नित्य देने का संदेश मिल जाने से ही इतना बड़ा कार्य संपन्न हो गया। आगे इसकी और भी प्रगति होने की संभावना है। हम जन्मभूमि छोड़कर आए। वहाँ हाईस्कूल, फिर इंटरकॉल...
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हमारी वसीयत और विरासत (भाग 93): शान्तिकुञ्ज में गायत्री तीर्थ की स्थापना
यहाँ सभी सत्रों में आने वालों की स्वास्थ्य परीक्षा की जाती है। उसी के अनुरूप उन्हें साधना करने का निर्देश दिया जाता है। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय पर इस प्रकार शोध करने वाली विश्व की यह पहली एवं स्वयं में अनुपम प्रयोगशाला है।
इसके अतिरिक्त भी सामयिक प्रगति के लिए जनसाधारण को जो प्रोत्साहन दिए जाने हैं, उनकी अनेक शिक्षाएँ यहीं दी जाती हैं। अगले दिनों और भी बड़े काम हाथ में लिए जाने हैं।
गायत्री परिवार के लाखों व्यक्ति उत्तराखंड की यात्रा करने के लिए जाते समय शान्तिकुञ्ज के दर्शन करते हुए यहाँ की रज मस्तिष्क पर लगाते हुए तीर्थयात्रा आरंभ करते हैं। बच्चों के अन्नप्राशन, नामकरण, मुंडन, यज्ञोपवीत आदि संस्कार यहाँ आकर कराते हैं; क्योंकि परिजन इसे सिद्धपीठ मानते हैं। पूर्वजों के श्राद्ध तर्पण करा...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 92): शान्तिकुञ्ज में गायत्री तीर्थ की स्थापना
देश की सभी भाषाओं और सभी मत-मतांतरों को पढ़ाने और उनके माध्यम से हर क्षेत्र में कार्यकर्त्ता तैयार करने के लिए एक अलग भाषा एवं धर्मविद्यालय शान्तिकुञ्ज में ही इसी वर्ष बनकर तैयार हुआ है और ठीक तरह चल पड़ा है।
उपरोक्त कार्यक्रमों को लेकर जो भी कार्यकर्त्ता देशव्यापी दौरा करते हैं, वे मिशन के प्रायः 10 लाख कार्यकर्त्ताओं में उन क्षेत्रों में प्रेरणाएँ भरने का काम करते हैं, जहाँ वे जाते हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात एवं उड़ीसा, इन क्षेत्रों में संगठन पूरी तरह सुव्यवस्थित हो गया है। अब देश का जो भाग प्रचार-क्षेत्र में भाषा व्यवधान के कारण सम्मिलित करना नहीं बन पड़ा है, उन्हें भी एकाध वर्ष में पूरी कर लेने की योजना है।
प्रवासी भारतीय प्रायः...

उत्तर प्रदेश में आयोजित हुआ रक्तदान महायज्ञ, परिजनों ने 2115 यूनिट किया रक्तदान
उत्तर प्रदेश राज्य के जनपदों में अखिल विश्व गायत्री परिवार से जुड़े परिजनों ने 21 सितंबर को सामूहिक रूप से रक्तदान महायज्ञ शिविर का आयोजन किया। शिविर में सुल्तानपुर जनपद द्वारा कीर्तिमान स्थापित करते हुए 1008 यूनिट रक्तदान किया गया। उसके बाद बुलंदशहर में 220 यूनिट रक्तदान किया गया। रक्तदान महायज्ञ माता भगवती देवी शर्मा जी के 99वें जयंती के अवसर पर आयोजित हुआ। शिविर का आयोजन 21 सितंबर को प्रातः 10 बजे से प्रारंभ करते हुए सायं 5 बजे तक चलाया गया। शिविर में वरिष्ठ परिजनों के साथ ही युवा मंडल, महिला मंडल की टीम ने भी बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग किया।
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जनपद कौशाम्बी के गायत्री परिजनों ने सामूहिक रक्तदान महायज्ञ का लगाया शिविर, 21 परिजनों ने किया रक्तदान
• माता भगवती देवी शर्मा जी की जयंती के अवसर पर लोगों ने रक्तदान कर दी आहुति
• जनपद के 21 परिजनों ने स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय के रक्त केंद्र मंझनपुर में किया रक्तदान
कौशाम्बी: अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज के तत्वावधान में रक्तदान महायज्ञ के तहत 21 सितंबर दिन रविवार को जिलास्तरीय रक्तदान शिविर का आयोजन किया है। रक्तदान शिविर का आयोजन जनपद के स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय स्थित राजकीय रक्तकेंद्र मंझनपुर में किया गया। रक्तदान महायज्ञ शिविर माता भगवती देवी शर्मा जी के 99वें जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया जिसका शुभारंभ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ हरिओम कुमार सिंह, सीएमएस कौशाम्बी डॉ सुनील कुमार शुक्ला के साथ गायत्री परिवार के कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में दीप प्रज्ज्वलन क...