हमारी वसीयत और विरासत (भाग 97): बोओ एवं काटो’ का मंत्र, जो हमने जीवन भर अपनाया
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इसे परीक्षा का एक घटनाक्रम ही कहना चाहिए कि पाँच बोर का लोडेड रिवाल्वर शातिर हाथों में भी काम न कर सका। जानवर काटने के छुरे के बारह प्रहार मात्र प्रमाण के निशान छोड़कर अच्छे हो गए। आक्रमणकारी अपने बम से स्वयं घायल होकर जेल जा बैठा। जिसके आदेश से उसने यह किया था, उसे फाँसी की सजा घोषित हुई। असुरता के आक्रमण असफल हुए। एक उच्चस्तरीय दैवी प्रयास को निष्फल कर देना संभव न हो सका। मारने वाले से बचाने वाला बड़ा सिद्ध हुआ।
इन दिनों एक से पाँच करने की सूक्ष्मीकरण विधा चल रही है। इसलिए क्षीणता तो आई है। तो भी बाहर से काया ऐसी है, जिसे जितने दिन चाहें जीवित रखा जा सके। पर हम जान-बूझकर इसे इस स्थिति में रखेंगे नहीं। कारण कि सूक्ष्मशरीर से अधिक काम लिया जा सकता है और स्थूलशरीर उसमें किसी कदर बाधा ही डालता है।
शरीर की जीवनीशक्ति असाधारण रही है। उसके द्वारा दस गुना काम लिया गया है। शंकराचार्य, विवेकानंद बत्तीस-पैंतीस वर्ष जिए, पर 350 वर्ष के बराबर काम कर सके। हमने 75 वर्षों में विभिन्न स्तर के इतने काम किए हैं कि उनका लेखा-जोखा लेने पर वे 750 वर्ष से कम में होने संभव प्रतीत नहीं होते। यह सारा समय नवसृजन की एक-से-एक अधिक सफल भूमिकाएँ बनाने में लगा है; निष्क्रिय— निष्प्रयोजन कभी नहीं खाली रहा।
बुद्धि को भगवान के खेत में बोया और वह असाधारण प्रतिभा बनकर प्रकटी। अभी तक लिखा हुआ साहित्य इतना है, जिसे शरीर के वजन से तोला जा सके। यह सभी उच्चकोटि का है। आर्षग्रंथों के अनुवाद से लेकर प्रज्ञायुग की भावी पृष्ठभूमि बनाने वाला ही सब कुछ लिखा गया है। आगे का सन् 2000 तक का हमने अभी से लिखकर रख दिया है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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