हमारी वसीयत और विरासत (भाग 66):विचार-क्रांति का बीजारोपण पुनः हिमालय आमंत्रण
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मथुरा से ही उस विचार-क्रांति अभियान ने जन्म लिया, जिसके माध्यम से आज करोड़ों व्यक्तियों के मन-मस्तिष्कों को उलटने का संकल्प पूरा कर दिखाने का हमारा दावा आज सत्य होता दिखाई देता है। सहस्रकुंडी यज्ञ तो पूर्वजन्म से जुड़े उन परिजनों के समागम का एक माध्यम था, जिन्हें भावी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी थी। इस यज्ञ में एक लाख से भी अधिक लोगों ने समाज से, परिवार से एवं अपने अंदर से बुराइयों को निकाल फेंकने की प्रतिज्ञाएँ लीं। यह यज्ञ नरमेध यज्ञ था। इनमें हमने समाज के लिए समर्पित लोकसेवियों की माँग की एवं समयानुसार हमें वे सभी सहायक उपलब्ध होते चले गए। यह सारा खेल उस अदृश्य बाजीगर द्वारा संपन्न होता ही हम मानते आए हैं, जिसने हमें माध्यम बनाकर समग्र परिवर्तन का ढाँचा खड़ा कर दिखाया।
मथुरा में ही नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक क्रांति के लिए गाँव-गाँव आलोक वितरण करने एवं घर-घर अलख जगाने के लिए सर्वत्र गायत्री यज्ञ समेत युगनिर्माण सम्मेलन के आयोजनों की एक व्यापक योजना बनाई गई। मथुरा के सहस्रकुंडी यज्ञ के अवसर पर जो प्राणवान व्यक्ति आए थे, उन्होंने अपने यहाँ एक शाखा-संगठन खड़ा करने और एक ऐसा ही यज्ञ आयोजन का दायित्व अपने कंधों में लिया। ये कहें कि उस दिव्य वातावरण में अंतःप्रेरणा ने उन्हें वह दायित्व सौंपा, ताकि हर व्यक्ति न्यूनतम एक हजार विचारशील व्यक्तियों को अपने समीपवर्ती क्षेत्र में से ढूँढ़कर अपना सहयोगी बनाए। आयोजन चार-चार दिन के रखे गए। इनमें तीन दिन तीन क्रांतियों की विस्तृत रूपरेखा और कार्यपद्धति समझाने वाले संगीत और प्रवचन रखे गए। अंतिम चौथे दिन यज्ञाग्नि के सम्मुख उन लोगों से व्रत धारण करने को कहा गया, जो अवांछनीयता को छोड़ने और उचित परंपराओं को अपनाने के लिए तैयार थे।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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