हमारी वसीयत और विरासत (भाग 70): मथुरा के कुछ रहस्यमय प्रसंग
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गायत्री परिवार का संगठन करने के निमित्त, महापुरश्चरण की पूर्णाहुति के बहाने हजार कुंडी यज्ञ मथुरा में हुआ था। उसके संबंध में यह कथन अत्युक्तिपूर्ण नहीं है कि इतना बड़ा आयोजन महाभारत के उपरांत आज तक नहीं हुआ।
उसकी कुछ रहस्यमयी विशेषताएँ ऐसी थीं, जिनके संबंध में सही बात कदाचित् ही किसी को मालूम हो। एक लाख नैष्ठिक गायत्री उपासक देश के कोने-कोने में से आमंत्रित किए गए। वे सभी ऐसे थे, जिनने धर्मतंत्र से लोक-शिक्षण का काम हाथों-हाथ सँभाल लिया और इतना बड़ा हो गया, जितने कि भारत के समस्त धार्मिक संगठन मिलकर भी पूरे नहीं होते। इन व्यक्तियों से हमारा परिचय बिलकुल न था। पर उन सबके पास निमंत्रण-पत्र पहुँचे और वे अपना मार्ग-व्यय खरच करके भागते चले आए। यह एक पहेली है, जिसका समाधान ढूँढ़ पाना कठिन है।
दर्शकों की संख्या मिलाकर दस लाख तक प्रतिदिन पहुँचती रही। इन्हें सात मील के घेरे में ठहराया गया था। किसी को भूखा नहीं जाने दिया। किसी से भोजन का मूल्य नहीं माँगा गया। अपने पास खाद्य सामग्री मुट्ठी भर थी। इतनी, जो एक बार में बीस हजार के लिए भी पर्याप्त न होती। पर भंडार अक्षय हो गया। पाँच दिन के आयोजन में प्रायः पाँच लाख से अधिक खा गए। पीछे खाद्य सामग्री बच गई, जो उपयुक्त व्यक्तियों को बिना मूल्य बाँटी गई। व्यवस्था ऐसी अद्भुत रही, जैसी हजार कर्मचारी नौकर रखने पर भी नहीं कर सकते थे।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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